राम और रावण
द्वंद छिड़ा जी द्वंद छिड़ा,
कौन अधिक प्रिय है राम को,
सीता, लक्ष्मण, हनुमान को, भ्रम पड़ा ?
सीताजी कहे,
मैं राम की अर्धांगिनी,
जन्म जन्मान्तर की संगिनी,
बिना मेरे वे रहे सदा अधूरे ।
लक्ष्मण कहे,
राम मेरे ज्येष्ठ भ्राता,
है हमारा खून का नाता, बिना मेरे,
वे एक कदम भी ना चले ।
हनुमान कहे,
मेरे हृदय में राम का वास,
मुख पे मेरे सिर्फ राम का नाम,
मुझ सी भक्ति से ही प्रभु मिले ।
श्रीराम भी मुस्कुराए,
धर्म संकट का हुआ भान,
किया निर्णय, जो बना मिसाल,
और क्षण में दूर हुआ, सभी का अज्ञान ।
राम नहीं सियावार,
राम नहीं लखन के भाई,
राम नहीं हनुमान कोसाई,
राम तो है निर्विकार,
जहां अहं का रावण बैठा,
राम नहीं मिलेंगे वहां !
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वनवास और आज
वनवास का वक़्त आया जी,
यह कलियुग की रामायण है।
कैकयी, कौशल्या एक है,
भरत, लक्ष्मण भी एक है।
ख़ाली हाथ राम है,
सीता ही बस साथ है।
मन में कटुता नहीं, करुणा है,
दोनों की ही अग्निपरीक्षा है ।
युद्ध किसी और से नहीं,
अपितु अपने आप से है ।
दशानन नहीं, राग, द्वेष, अहं,
आसक्ति का चौमुखी रावण है।
अब ना कोई पता ठिकाना है,
बिना मुड़े, आगे चलते जाना है।
कर्मोदय है, लोग मात्र माध्यम है,
जीवन कुछ नही, बस यात्रा अविराम है ।
श्री राम अदालत में
जो बहा था खून,
उसके दूर तक छीटें गए
कल अदालत में पुनः,
श्री राम घसीटे गए
जज ने बोला हे प्रभु,
हमको क्षमा है चाहिए
आप नाम जज हुए हो,
कटघरे में आईये
अल्लाह नदारद है,
थे जबकि उनको भी summon गए
ऐसा सुन के कटघरे में,
राम जी फिर तन गए
राम बोले मैं हिन्दू मुस्लिम,
दोनों के ही साथ हूँ
मै ही अल्लाह, मै ही नानक,
मै ही अयोध्यानाथ हूँ
त्रेतायुग में जिस लिए,
मैंने लिया अवतार था
आज देखता हूँ तो लगता,
है की सब बेकार था
केवट और शबरी के बहाने,
भेद-भाव को तोड़ा था
तुमको समझाने को मैंने,
सीता तक को छोड़ा था
मेरे मंदिर के लिए जब,
तुम थे रथ पे चढ़ रहे
देश के एक कोने में थे,
कश्मीरी पंडित मर रहे
फिर मेरी ही सौगंध खा के,
काम ऐसा कर गए
मेरे लिए दंगे हुए,
मेरे ही बच्चे मर गए
खैर…
अब भी है समय,
तुम भूल अपनी पाट दो
जन्मभूमि पे घर बनाओ,
बेघरों में बांट दो
ऐसा करना हूँ मै कहता,
परम-पुन्य का कार्य है
न्याय, अहिंसा, परमार्थ, प्रेम
यही तो राम-राज है
तब बीच में बोला किसी ने,
जब वो था उकता गया
रामचंद्र का भेस बना के,
ये कौन मुसलमां आ गया
ऐसा कहना था के भैय्या,
ऐसा हल्ला मच गया
जो ऐन टाइम पे कट लिया
बस वो ही था जो बच गया
फिर राम-भक्तों के ही हांथों,
राम जी पीटे गए
जो बहा था खून,
उसके दूर तक छीटें गए
जो बहा था खून,
उसके दूर तक छीटें गए
–
गौरव त्रिपाठी
अनइरेज़ पोएट्री | द कुकू क्लब
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यह कलियुग की रामायण है।
कैकयी, कौशल्या एक है,
भरत, लक्ष्मण भी एक है।
ख़ाली हाथ राम है,
सीता ही बस साथ है।
मन में कटुता नहीं, करुणा है,
दोनों की ही अग्निपरीक्षा है ।
युद्ध किसी और से नहीं,
अपितु अपने आप से है ।
दशानन नहीं, राग, द्वेष, अहं,
आसक्ति का चौमुखी रावण है।
अब ना कोई पता ठिकाना है,
बिना मुड़े, आगे चलते जाना है।
कर्मोदय है, लोग मात्र माध्यम है,
जीवन कुछ नही, बस यात्रा अविराम है ।
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श्री राम अदालत में
जो बहा था खून,
उसके दूर तक छीटें गए
कल अदालत में पुनः,
श्री राम घसीटे गए
जज ने बोला हे प्रभु,
हमको क्षमा है चाहिए
आप नाम जज हुए हो,
कटघरे में आईये
अल्लाह नदारद है,
थे जबकि उनको भी summon गए
ऐसा सुन के कटघरे में,
राम जी फिर तन गए
राम बोले मैं हिन्दू मुस्लिम,
दोनों के ही साथ हूँ
मै ही अल्लाह, मै ही नानक,
मै ही अयोध्यानाथ हूँ
त्रेतायुग में जिस लिए,
मैंने लिया अवतार था
आज देखता हूँ तो लगता,
है की सब बेकार था
केवट और शबरी के बहाने,
भेद-भाव को तोड़ा था
तुमको समझाने को मैंने,
सीता तक को छोड़ा था
मेरे मंदिर के लिए जब,
तुम थे रथ पे चढ़ रहे
देश के एक कोने में थे,
कश्मीरी पंडित मर रहे
फिर मेरी ही सौगंध खा के,
काम ऐसा कर गए
मेरे लिए दंगे हुए,
मेरे ही बच्चे मर गए
खैर…
अब भी है समय,
तुम भूल अपनी पाट दो
जन्मभूमि पे घर बनाओ,
बेघरों में बांट दो
ऐसा करना हूँ मै कहता,
परम-पुन्य का कार्य है
न्याय, अहिंसा, परमार्थ, प्रेम
यही तो राम-राज है
तब बीच में बोला किसी ने,
जब वो था उकता गया
रामचंद्र का भेस बना के,
ये कौन मुसलमां आ गया
ऐसा कहना था के भैय्या,
ऐसा हल्ला मच गया
जो ऐन टाइम पे कट लिया
बस वो ही था जो बच गया
फिर राम-भक्तों के ही हांथों,
राम जी पीटे गए
जो बहा था खून,
उसके दूर तक छीटें गए
जो बहा था खून,
उसके दूर तक छीटें गए
–
गौरव त्रिपाठी
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रावण, राम तेरे मन में हैं !
मधुश्री: आ आ आ आ आ
पल-पल है भारी वो विपदा है आई
मोहे बचाने अब आओ रघुराई
आओ रघुवीर आओ, रघुपति राम आओ
मोरे मन के स्वामी, मोरे श्रीराम आओ
राम-राम जपती हूँ सुन लो मेरे राम आओ
राम-राम जपती हूँ सुन लो मेरे राम जी
बजे सत्य का डंका, जले पाप की लंका
इसी क्षण तुम आओ, मुक्त कराओ,
सुन भी लो अब मेरी दुहाई
पल-पल है भारी वो विपदा है आई
मोहे बचाने अब आओ रघुराई
पुरुष: राम को भूलो, ये देखो रावन आया है
फैली सारी सृष्टी पर जिसकी छाया है
क्यों जपती हो राम-राम तुम?
क्यों लेती हो राम-नाम तुम?
राम-राम का रटन जो ये तुमने है लगाया
सीता, सीता तुमने राम में ऐसा क्या गुन पाया?
मधुश्री: गिन पायेगा उनके गुन कोई क्या इतने शब्द ही कहाँ हैं
पहुँचेगा उस शिखर पे कौन भला मेरे राम जी जहाँ हैं
जग में सबसे उत्तम हैं, मर्यादा पुरुषोत्तम हैं
सबसे शक्तिशाली हैं, फिर भी रखते संयम हैं
पर उनके संयम की अब आने को है सीमा
रावण, समय है माँग ले क्षमा
कोरस: बजे सत्य का डंका, जले पाप की लंका
आये राजा राम, करें हम प्रणाम
संग आये लक्ष्मण जैसा भाई
मधुश्री: पल-पल है भारी वो विपदा है आई
मोहे बचाने अब आओ रघुराई
पुरुष: राम में शक्ति अगर है, राम में साहस है तो
क्यों नहीं आये अभी तक वो तुम्हारी रक्षा को
जिनका वर्णन करने में थकती नहीं हो तुम यहाँ
ये बताओ वो तुम्हारे राम हैं इस पल कहाँ
मधुश्री: राम ह्रदय में हैं मेरे, राम ही धड़कन में हैं
राम मेरी आत्मा में, राम ही जीवन में हैं
राम हर पल में हैं मेरे, राम हैं हर श्वास में
राम हर आशा में मेरी, राम ही हर आस में
पुरुष: हो
राम ही तो करूणा में हैं, शांति में राम हैं
राम ही हैं एकता में, प्रगति में राम हैं
राम बस भक्तों नहीं, शत्रु की भी चिंतन में हैं
देख तज के पाप रावण राम तेरे मन में हैं
राम तेरे मन में हैं, राम मेरे मन में हैं -२
राम तो घर-घर में हैं, राम हर आँगन में हैं
मन से रावण जो निकाले, राम उसके मन में हैं -२
मधुश्री: पल-पल है भारी वो विपदा है आई
मोहे बचाने अब आओ रघुराई
कोरस: ( सुनो राम जी आये, मोरे राम जी आये
राजा रामचंद्र आये, श्रीरामचंद्र आये
राम जी आये, मोरे राम जी आये
श्रीरामचंद्र आये हो ) -२
फ़िल्म स्वदेश स्वर: मधुश्री, विजय प्रकाश, आशुतोष गोवरिकर
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